व्यक्तिगत नैतिकता का अर्थ समाजसेवा करना नहीं

Publication: 
News Line Compact
Publication Date: 
Tuesday, 2 June 2015

सामंतिक बाजार में एकाधिकार (मोनोपॉली) अकसर डरा धमका कर मिलता है। सही कानून, पुलिस और न्यायपालिका इस समस्या को हल करने में सार्थक होगी। इन बाजारों को प्रतियोगी बनाने के लिये सरकार को ब्याज दर को विनियमित करने और न्यूनतम मजदूरी कानून लागू करने के बजाय लोगों को बुनियादी सुरक्षा देने की जरूरत है। अगर लोगों को यह भरोसा होगा की सरकार उनके जान-माल की सुरक्षा कर सकती है तो वे लोग खुद ही सामंती शोषण से निपटने का तरीका ढूंढ लेंगे।

व्यापार में कुछ खास नैतिक खतरे नहीं है। कोई भी काम जिसमें सही या गलत में चुनाव करना पड़े, उसमें नैतिक खतरा होता ही है। व्यापारी भले ही अपने काम में ज्यादा नैतिक दुविधा का सामना करता है लेकिन यह किसी राजनेता या नौकरशाह की दुविधा से ज्यादा नहीं होता होगा। अलग-अलग व्यवसायों के लिए अलग-अलग एथिक्स नहीं चाहिए, बल्कि एक ऐसा नीति-शास्त्र विकसित करना चाहिए जो सबका मार्गदर्शन करे। व्यापार नैतिकता और कुछ नहीं, बल्कि व्यक्तिगत नैतिकता है।

व्यापार की सामाजिक जिम्मेदारी नैतिकता को ध्यान में रखते हुए मुनाफे में इजाफा करना है। लेकिन क्या व्यापार में लोग नैतिक कस्टम के परे जा सकते हैं? क्या, जब समाज का नैतिक कस्टम काफी न हो तो लोग व्यक्तिगत नैतिकता से काम कर सकते हैं? या फिर उन्हें खुद को समाज के नैतिक कस्टम तक सीमित कर लेना होगा? ऑस्ट्रियन्स की सोच है कि जो उद्यमी जोखिम लेते हैं और व्यक्तिगत नैतिकता से जीते हैं, वही लाभ के नए अवसरों की खोज कर पाते है। नैतिक होना कोई खास नियम का पालन करना नहीं होता। लेकिन अगर किसी की व्यक्तिगत नैतिकता की वजह से कम्पनी को नुकसान हो रहा हो जैसे अगर कोई कम्पनी के संसाधनों का इस्तमाल समाज सेवा के लिये कर रहा हो तो उसे उस कम्पनी में काम करने का अधिकार नहीं है। क्योंकि वहां जो पैसा लगा है वह शेयर होल्डरों का है उस व्यक्ति विशेष का नहीं।एक कम्पनी का पहला दायित्व प्रकटीकरण, पारदर्शिता और जवाबदेही है। अगर किसी भी परियोजना के लिए एक बड़ी राशि या दीर्घकालिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता है तो उसके लिये शेयरधारकों की अनुमति जरूरी है। एक व्यक्ति यह काम अकेले नहीं कर सकता। कम्पनी के कर्मचारियों के लिए व्यक्तिगत नैतिकता का अर्थ समाजसेवा करना नहीं, बल्कि अपने संविदात्मक दायित्व का निर्वाह करना है। बहुत लोगों का सोचना है कि बाजार विकसित देशों में भले ही अच्छा होता है लेकिन विकासशील देशों में बाजार का मतलब शोषण होता है। कम विकसित समाज में शोषण की वजह संपत्ति अधिकारों की जानकारी और सही कानून की कमी है। यहां बाजार में प्रतिद्वंदिता नहीं, सामंतवाद है, जिसमे सिर्फ एक ही साहूकार या पन्सारी है। लेकिन इस तरह के बाजार को प्रतिबंधित या विनियमित करना शोषण रोकने का सही समाधान नहीं है।

इस तरह के ग्रामीण इलाकों में सरकारी तंत्र ना के बराबर होते हैं और जहां होते भी है वहां उन लोगों के वश में होते हैं, जिन्हें उनको वश में करना चाहिए। स्थानीय सरकार और आम जनता दोनों ही इन सामंती प्रभुओं पर निर्भर होते हैं, यही वजह है कि इसका निषेध और विनियमन प्रभावी नहीं है। साहूकारों को हटाना भी समस्या का समाधान नहीं है क्योंकि लोगों को ऋण की आवश्यक्ता भी होती है और अगर साहूकारों को हटा दिया गया तो लोग ऋण लेने किसके पास जाएंगे?

सामंतिक बाजार में एकाधिकार (मोनोपॉली) अकसर डरा धमका कर मिलता है। सही कानून, पुलिस और न्यायपालिका इस समस्या को हल करने में सार्थक होगी। इन बाजारों को प्रतियोगी बनाने के लिये सरकार को ब्याज दर को विनियमित करने और न्यूनतम मजदूरी कानून लागू करने के बजाय लोगों को बुनियादी सुरक्षा देने की जरूरत है। अगर लोगों को यह भरोसा होगा की सरकार उनके जान-माल की सुरक्षा कर सकती है तो वे लोग खुद ही सामंती शोषण से निपटने का तरीका ढूंढ लेंगे। दुखद बात यह है कि सरकार खुद ही कई जगहों पर गरीबों का शोषण करती है। शहरी इलाकों में जिन कामों में कम पूंजी और कम कौशल लगता है चाहे वो ठेला निकालना हो या रिक्शा चलाना इन सब कामों के लिए लाइसेंस लेना होता है जो की काफी सीमित होता है और जिसे हासिल करना भी मुश्किल है। यही वजह है कि इस तरह के काम करने वालों को हमेशा जबरन वसूली, उत्पीड़न और अपमान झेलना पड़ता है। भारत में सरकार इन छोटे व्यवसाइयों से कई करोड़ रुपये वसूल लेती है।

वहीं दूसरी तरफ, ग्रामीण इलाकों में किसानों को सहायता राशि बहुत कम दी जाती है और तो और, ग्रामीणों की जीविका के दो सबसे महत्वपूर्ण संसाधन जंगल और पानी का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया है और अब ग्रामीणों के पास ईमानदारी से जीविका कमाने के लिए ज्यादा संसाधन नही बचे हैं। जहां एक तरफ सरकार रोजगार सृजन करने के लिए योजनाएं बना रही है वहीं दूसरी तरफ छोटे व्यापारियों और किसानों के जीविका के साधन को खत्म कर रही है। सामंती बाजार के दोहन से लोगों को बचाने के लिये सबसे ज्यादा जरूरी है छोटे व्यापारियों पर से प्रतिबंध हटाना, जंगल और पानी लोगों को वापस करना और लोगों की सुरक्षा के लिये प्रभावी कानून व्यवस्था देना।

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